Monday, January 14, 2019

क्योकिं डर के आगे वो है

आप सोच रहे होंगे कि ये वो कौन है , ये दरसल एक पूरी कौम है जो एक अलग ही मिट्टी की बनी हुई है। मैं इनके बारे में इतने आत्म विश्वास से यह बात इसलिए कर पा रही हूँ क्योंकि मैं भी इन्हीं में इनमें से एक हूँ और मैंने  इन्हें बहुत करीब से देखा है बड़ी हिम्मत से हर डर के आगे खड़े हुए और हर खतरे को चुनौती देते हुए।

मैं बात कर रही हूँ सरहद के पहरेदार की जीवन संगिनी की। वो जिसका रिश्ता देश की रक्षा के लिए पहली पंक्ति में खड़े सैनिक से , आखिरी सांस तक जुड़ गया है। ये रिश्ता जुड़ते ही वो महिलाओं की सबसे मजबूत कौम का हिस्सा हो जाती है।

कुछ वर्ष पहले रेलयात्रा के दौरान अपनी एक साल की बच्ची के साथ अकेले यात्रा करते वक़्त मेरी सहयात्री ने जब मुझसे मेरे पति के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि मेरे पति भारतिय सेना में है और इस वक्त कश्मीर में तैनात हैं , अचानक उनके चेहरे के भाव बदले और विस्मय और दया के मिश्रित भावों के साथ उन्होंने पूछा ‘डर नही लगता’ , उस वक़्त तो मैंने वो सवाल हंस कर टाल दिया लेकिन उनका वो सवाल मेरे दिमाग के किसी कोने में जमकर बैठ गया।

मैने अपने आप से वही सवाल पूछना शुरू किया ‘क्या मुझे डर नही लगता” क्या मेरे जैसी लाखों और महिलाएं जिन्होंने गर्व के साथ देश के सिपहसालारों को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना है, क्या उन्हें डर नही लगता। मैंने अपनी और उन सब की जिंदगी को गहराई से पढ़ना समझना शुरू किया और पाया कि डर तो है, लेकिन कुछ और है जो इस डर के आगे है, और वो है साहस, सहनशीलता, गर्व और आत्मविश्वास के साथ इस डर से लड़ता हुआ उनका व्यक्तित्व।

आप एक बार के लिए खुद सोचकर देखिए कि जब आप का कोई करीबी अगर ऐसे किसी इलाके में हो जहां उन्हें जान का खतरा हो तो क्या आपको उनको चिंता नही होगी। आप दिन में चार बार उनका हाल चाल पूछेंगे । तो आप सोचिये की जान हथेली पर लेकर चलने वाले और दिन रात खतरों से खेलने वाले है हमारे पति की खबर जब हमें सिर्फ महीने में चार बार मिल पाती है तो उन पर क्या बीतती होगी।लेकिन इस चिंता और भय से लड़कर आगे बढ़ने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प ही नही है। क्योंकि ये एक पल की परेशानी नहीं जीवन भर की कहानी है।

क्या हो अगर वो डर हमसे जीतकर हमारे अंदर घर करके बैठ जाये।
हमारे आसपास हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में पसर जाए। क्या हम एक सामन्य जिंदगी जी पाएंगे। क्या हम वो दोहरी जिम्मेदारीयां इतनी आसानी से निभा पाएंगे जो इस गठबधंन के साथ ही हमने स्वतः अपना ली हैं । अनुष्का शर्मा न, जो स्वयं एक फौजी परिवार से आती है, उन्होंने एक बार ये बात कही थी और मैं उन्ही के शब्द दोहरा रही हूँ कि “हर फौजी की अर्धांगिनी इसलिए महान है क्योंकि वो अपने भीतर किसी कोने में छुपे हुए इस डर को कभी अपने बच्चों या बाकी परिवार तक कभी नही पहुचने देती”। ये जो भी चिंता या आंशका होती है वो हमारे जहन में जन्म लेती है और वहीं दफन हो जाती है।

यकीन मानिए मैंने बहुत सी ऐसी महिलाओं को जानती हूँ जिनके पति बहुत ही संवेदनशील इलाकों में तैनात हैं लेकिन उनके माथे पर एक शिकन नही है। जिस बेफिक्री से अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए वो अपनी जिन्दगी जीती हैं मुझे अचरज होता है, मैं खुद उनमे से एक होते हुए भी ये सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि जानें ये किस मिट्टी की बनी है और इसीलिए में कहती हूँ कि “डर के आगे वो है”।

उन्हें किसी वीरता पुरस्कार से नही नवाज़ जाता न उनके अदम्य साहस की गाथा कहीं इतिहास में दर्ज होती है , लेकिन फिर भी उनका समर ज़ारी है ….

इस पंद्रह जनवरी को  सेना दिवस पर जब हम हम अपनी सेना को याद करें तो इस सेना के साथ खड़ी अविचल अटल सेना को भी ध्यान में लाइए जो हर कदम पर इस उनके साथ खड़ी एक और लड़ाई लड़ रही है वो भी अकेले अपने दम पर।
उनके इस जज़्बे को मेरा सलाम।

जयहिंद जय हिन्द की सेना।

ममता पंडित


Sunday, February 14, 2016

साये

काश तुम्हारे क़दमों की आहट ने,चेहरे के रंग न उडाये होते..
काश उन अदाओं पर, तुम न यूं मुस्कुराये होते..
न बैचैन सा रहता दिल मेरा...न साथ तुम्हारे ये बेनाम साये होते....
-ममता पंडित 

Thursday, February 11, 2016

तमाम दुनिया भटक आये ..अब ज़रा कहीं ठहरे तो सुकून आये